वांछित मन्त्र चुनें

पु॒रु॒द्र॒प्सा अ॑ञ्जि॒मन्तः॑ सु॒दान॑वस्त्वे॒षसं॑दृशो अनव॒भ्ररा॑धसः। सु॒जा॒तासो॑ ज॒नुषा॑ रु॒क्मव॑क्षसो दि॒वो अ॒र्का अ॒मृतं॒ नाम॑ भेजिरे ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

purudrapsā añjimantaḥ sudānavas tveṣasaṁdṛśo anavabhrarādhasaḥ | sujātāso januṣā rukmavakṣaso divo arkā amṛtaṁ nāma bhejire ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पु॒रु॒ऽद्र॒प्साः। अ॒ञ्जि॒ऽमन्तः॑। सु॒ऽदान॑वः। त्वे॒षऽसं॑दृशः। अ॒न॒व॒भ्रऽरा॑धसः। सु॒ऽजा॒तासः॑। ज॒नुषा॑। रु॒क्मऽव॑क्षसः। दि॒वः। अ॒र्काः। अ॒मृत॑म्। नाम॑। भे॒जि॒रे॒ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:57» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:21» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (पुरुद्रप्साः) बहुत मोहवाले (अञ्जिमन्तः) अच्छी कामना विद्यमान जिनकी ऐसे वा (सुदानवः) उत्तम दोनों के करने और (त्वेषसन्दृशः) प्रकाशित रूप को देखनेवाले (अनवभ्रराधसः) नहीं विद्यमान धन का नाश जिनके ऐसे और (जनुषा) जन्म से (सुजातासः) उत्तम प्रकार धर्म्मयुक्त व्यवहार से प्रसिद्ध (रुक्मवक्षसः) सुवर्ण आदि से जुड़े हुए आभूषण वक्षस्थलों में जिनके वे (दिवः) कामना करनेवाले (अर्काः) सत्कार करने योग्य जन (अमृतम्) नाश से रहित (नाम) नाम का (भेजिरे) सेवन करें, उनका सब प्रकार सत्कार करिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो जन उत्तम गुण, कर्म्म और स्वभाव को सब प्रकार ग्रहण करते हैं, वे सब प्रकार से सुखी होते हैं ॥५॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! ये पुरुद्रप्सा अञ्जिमन्तः सुदानवस्त्वेषसन्दृशोऽनवभ्रराधसो जनुषा सुजातासो रुक्मवक्षसो दिवोऽर्का अमृतं नाम भेजिरे तान् सर्वथा सत्कुरुत ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुद्रप्साः) बहुमोहाः (अञ्जिमन्तः) प्रकृष्टा अञ्जयः कामना विद्यन्ते येषान्ते (सुदानवः) उत्तमदानाः (त्वेषसन्दृशः) ये त्वेषं सम्पश्यन्ति (अनवभ्रराधसः) न विद्यतेऽवभ्रो धननाशो येषान्ते (सुजातासः) सुष्ठु धर्म्येण व्यवहारेण प्रसिद्धाः (जनुषा) जन्मना (रुक्मवक्षसः) रुक्माणि जटितान्याभूषणानि वक्षःसु येषान्ते (दिवः) कामयमानाः (अर्काः) सत्कर्त्तव्याः (अमृतम्) नाशरहितम् (नाम) (भेजिरे) सेवन्ताम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या उत्तमगुणकर्मस्वभावान् सर्वतो गृह्णन्ति ते सर्वथा सुखिनो जायन्ते ॥५॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे उत्तम गुण कर्म स्वभावयुक्त असतात ती सर्व प्रकारे सुखी होतात. ॥ ५ ॥